परदेस में अब गौरव का अहसास कराता है उत्तर प्रदेश - डॉ नरेंद्र तिवारी
हाल के वर्ष में ही अफ्रीका के एक देश में मुझे
लकड़ी के खिलौने देखने को मिले । विदेश में खिलौने देखना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। बड़ी बात है उन खिलौनों का भारतीय होना। ये ख़ुशी तब और बढ़ जाती है जब ये मालूम होता है कि
वो उत्तर प्रदेश के वाराणसी और मिर्जापुर में
ही बने हैं। सुनने में ये बात शायद कुछ लोगों को बड़ी न लगे। कुछ ये
बोल भी सकते हैं कि इसमें इसे लिखने या चर्चा की क्या बात है। बात बड़ी है, क्योंकि ये खिलौने उस शहर से संबंध
रखते हैं जिनकी पहचान विदेशों में अबतक साड़ी या कालीन से ही थी। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट
में वाराणसी को शामिल किये जाने के बाद से ये शहर तो बदला ही, यहाँ के हुनरमंद भी अब परदेस में धाक जमा रहे हैं।
1535
वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल और करीब 40
लाख की आबादी वाला ये शहर प्राचीनता के साथ -साथ अब हुनर के लिए भी जाना जाने
लगा है। प्रदेश में सरकार कोई भी हो, अगर किसी शहर को अपने देश में ही नहीं
बल्कि बाहर भी सराहा जाए तो ये बड़ी उपलब्धि है।
राज्य में योगी सरकार के आने के बाद 'एक जिला एक उत्पाद' की नीति से भी इसे
बल मिला है। उत्तर प्रदेश में लघु और मध्यम
उद्योगों को बढ़ावा देने और स्वरोजगार को प्रोत्साहित करने के मकसद से जब एक जिला एक उत्पाद योजना का शुभारंभ किया
गया था तो खुद कामगारों को यकीन नहीं हो रहा था कि उनके काम को दुनिया की इस भीड़ में
कैसे जगह मिलेगी ? खुद छोटे कारोबारी कहते
हैं कि योजनाए तो हर सरकार में बनी। लेकिन स्थानीय कौशल का विकास तभी दिखा जब हमारे
सामान का निर्यात बढ़ा। जाहिर है जब निर्यात
बढ़ेगा तो देश की जीडीपी में बढ़त तो होगी ही।
रजनीति से अलग अगर तुलनात्मक अध्ययन करें तो तस्वीर खुद साफ हो जाती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश ने पिछले चार साल में तेजी से तरक्की की है। ये काम चुटकी बजा कर हो जाता ऐसा नहीं है। घोटालों के संस्थागत ढाचों को तोड़कर प्रदेश के दरके हुए आधारभूत ढांचे को मजबूत करना, वैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता को दोबारा स्थापित करना, यानि पूरी कार्य-संस्कृति में ही परिवर्तन करना किसी चुनौती से कम नहीं है। देश के सबसे बड़े और विविधताओं वाले राज्य उत्तर प्रदेश में ऐसा होना कमाल तो है ही। किसी भी कारोबार की सफलता सुरक्षा के बिना संभव नहीं है। वाराणसी और मिर्जापुर में सभी धर्मो के लोग रहते हैं। लेकिन साड़ी, खिलौने,पान और कालीन के कारोबार में मुस्लिम भाइयों का भी बड़ा योगदान है। इन्वेस्टरमिट के बाद निर्यात का बढ़ना और छोटे कारीगरों को प्रोत्साहन ने उस सोच को भी राज्य में बदला है कि मौजूदा सरकार किसी धर्म या जाति विशेष के लिए ही अग्रसर है। तीन तलाक पीड़ित महिलाओं को सरकारी मदद की व्यवस्था, मुस्लिम छात्रों को मुख्यधारा में लाने के लिए मदरसों के पाठ्यक्रम में सुधार का फैसला और मुस्लिम बेटियों की शादी के लिए बजट की व्यवस्था ने समाज में सकरात्मक सोच को जन्म दिया है।
उत्तर प्रदेश की दो-तिहाई आबादी कृषि आधारित आय पर निर्भर है। साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के प्रधानमंत्री के संकल्प पर कार्य करते हुए प्रदेश सरकार ने कई योजनाओं को अमलीजामा पहनाया है । प्रदेश सरकार ने चार करोड़ से अधिक किसानों के मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनवाए। कृषि उपकरण खरीदने के लिए कस्टम हायरिंग सेंटर के जरिए हजारों किसानों को 40 से 90 प्रतिशत तक अनुदान मुहैया कराया गया। इस अनुदान-राशि को उनके खाते में डीबीटी के जरिये स्थानांतरित किया गया है। जाहिर है ऐसी कोशिशों से उन किसानो को सीधा फायदा हुआ है जो आर्थिक तंगी के कारण उन्नत खेती नहीं कर पा रहे थे। पश्च्मि के देशों में किसानों की तरक्की इसी फार्मूले की देन है। दुनिया के चार बड़े पैदावार करने वाले देशों में अमेरिका, चीन, भारत और ब्राजील शामिल हैं। ये सभी देश एक बड़े भूभाग पर खेती करते हैं। अमेरिका दुनिया के फूड मार्केट में सुपर पॉवर है लेकिन भारत भी उससे कम नहीं। सरकार कोई भी हो, केंद्र की या राज्य की, किसान -मजदूरों की जरूरतों को नजर अंदाज कर वह लोकप्रिय नहीं हो सकती है। चुनाव बाद जीत या हार पार्टी से ज्यादा उस राज्य में हुआ विकास का काम ही तय करता है। सूबे का मुखिया अगर सही मायने में सबका साथ, सबका विकास की नीति पर चला है तो जीत निश्चित होती है। इस सच्चाई को अगर दूसरे राज्य भी समझ लें तो सिर्फ वाराणसी या मिर्जापुर ही नहीं, दूसरे राज्यों के सामान और खाद्यान भी उतने ही लोकप्रिय और मुनाफे के हो सकते हैं जैसे लकड़ी के खिलौने या कालीन।
(डॉ नरेंद्र तिवारी)
स्वतंत्र पत्रकार