स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति और पीस एरिया के आधार पर दिव्यांगता पेंशन देने से नहीं किया जा सकता इंकार

लखनऊ। रायबरेली निवासी अमित कुमार सिंह को प्राईमरी हाईपर टेंशन और ब्रेन हैमरेज की बीमारी में सेना कोर्ट लखनऊ के न्यायधीश उमेश चन्द्र श्रीवास्तव और अभय रघुनाथ कार्वे की खण्ड-पीठ ने दिव्यांगता पेंशन देने का फैसला सुनाया।

मामला यह था कि सेना के मनमाने रवैये के कारण सोलह अमूल्य वर्ष देश को समर्पित करने वाले सैनिक अमित कुमार सिंह को को अपनी सेवा अवधि पूरी करने के पहले ही गंभीर बीमारियों के कारण घर भेज दिया गया, वह 2002 में भर्ती हुआ और उसे 2018 में डिस्चार्ज कर दिया गया, जबकि उसे प्राईमरी हाईपर टेंशन में 50% और ब्रेन हैमरेज में 30% डिसेबिलिटी मेडिकल बोर्ड ने दी थी लेकिन उसे सेना से जुडी होने से इंकार किया था। सरकार ने दो आधार पर उसकी मांग को ख़ारिज किया पहला कारण यह बताया कि बीमारी का संबंध युद्ध क्षेत्र से नहीं है यह पीस स्टेशन में हुई और दूसरा वादी ने स्वयं ही सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन दिया था, जिसके आधार पर उसे डिस्चार्ज किया गया, इसलिए वह दिव्यांगता पेंशन पाने का हकदार नहीं है।

इसके लिए वादी ने भारत सरकार और रक्षा-मंत्रालय के सामने अपील भी की लेकिन उसे सिरे से ख़ारिज कर दिया गया, उसके बाद 2021 में उसने सेना कोर्ट में अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय के माध्यम से वाद दायर किया, सुनवाई के दौरान वादी का पक्ष जोरदार दलीलों के साथ रखते हुए अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने कहा कि यदि किसी भी सैनिक में सैन्य-सेवा के दौरान शारीरिक या मानसिक दिव्यांगता आती है तो उसमें युद्ध-क्षेत्र और शांति-क्षेत्र एवं स्वयं डिस्चार्ज होने की मांग करना और उस आधार पर डिस्चार्ज किया जाना, उसकी दिव्यांगता पर कोई प्रभाव नहीं डालता, जिसके बारे में उच्चतम-न्यायालय, उच्च-न्यायालय और सशत्र-बल अधिकरण ने कई निर्णय पारित किए हैं।

विपक्षी के अधिवक्ता ने भारत सरकार और रक्षा-मंत्रालय का पक्ष रखते हुए दलील दी कि वादी युद्ध क्षेत्र में नहीं था जिसके कारण यह मान लिया जाए कि उस दबाव और तनाव की वजह से यह बीमारी हुई, इसलिए वादी का वाद जुर्माना सहित ख़ारिज करने योग्य है, लेकिन खण्ड-पीठ ने पूर्व में सरकार द्वरा जारी किए गए आदेशों को दरकिनार करते हुए 75% दिव्यांगता पेंशन चार महीने के अंदर देने का फैसला सुनाया और साथ में यह भी कहा कि यदि सरकार निर्णय का अनुपालन नियत समय में नहीं करेगी तो उसे 8% व्याज भी वादी को देना होगा।

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