समय, सांस और शरीर- ये तीनों परमात्मा के ही हैं


लोग रोज मरते और पैदा होते देखकर भी -हम समय, स्वांसा और शरीर को अपना मानते हैं- यही भूल है। संभवतः महाराज जी भक्तों को समझा रहे हैं कि समय, सांस और शरीर- ये तीनों तो परमात्मा के ही हैं -और उस परम आत्मा की छवि कोई भी हो सकती है - जिसे भी आप मानते हों -आपके इष्ट हों।

तो जो भी समय, सांस और शरीर को अपना मानने की भूल करते हैं और ये सोचते हैं की:
- समय तो कभी बदलेगा ही नहीं, - हमारी मृत्यु कभी नहीं होगी या - हमारा शरीर जैसा अभी है वैसा हमेशा रहेगा और फिर ऐसी सोच रखते हुए बुरे कर्म करता हैं जैसे अपने - परायों को दुःख देना उन्हें अंततः बहुत पछताना पड़ता है। बहुत दुःख भी उठाना पड़ता है। समय हमारा वर्तमान समय अच्छा है या बुरा है, वैसे तो हमारे ही कर्मों का फल है लेकिन है उस परम आत्मा की मर्ज़ी से - और गुज़र भी जाएगा। ये निश्चित है। इसलिए महाराज जी के भक्त अच्छे समय में विनम्र रहें, अपने आप को निरंतर याद दिलाते रहें की जो भी हमारे पास है वो उस परम आत्मा का दिया हुआ है और महाराज जी के आशीर्वाद से है। इसलिए सदैव उनके कृतज्ञ रहें।
 
अगर बुरा समय चल रहा है तो सर्वप्रथम ये स्वीकार करें ये हमारे साथ भी हो सकता है और फिर धैर्य के साथ अपने प्रयत्न करते रहें -ऐसी स्थिति से निकलने के लिए। सही समय आने पर सब ठीक हो जायेगा। बस महाराज जी में और परमात्मा में श्रद्धा बनायें रखें और विश्वास रखें की जो हो रहा है वो उनकी मर्ज़ी से हो रहा है और अंततः हमारे अच्छे के लिए ही हो रहा है। सांस (जब तक है, तब तक है) एक न एक दिन दिन सबको मरना ही होगा- यही परम सत्य है इसलिए इससे डरना नहीं चाहिए । जब जाना होगा तो दुनिया का कोई भी डॉक्टर बचा नहीं सकता। हमारे पास चाहे जितनी धन- संपत्ति हो जिस पर हमने कभी अहंकार किया हो -वो भी इस बेला पर हमें बचा नहीं सकती। और हमारे लाख चाहने पर पहले भी सांस नहीं रुक सकती (अगर ऐसे हालात बन जाते हैं)। केवल परमात्मा की मर्ज़ी से सांस चलती और रूकती है।
 
शरीर (भी ईश्वर ने ही दिया है) अगर हम किसी रोग से ग्रसित हैं और इलाज के बावजूद बहुत ज़्यादा या जल्दी फ़ायदा नहीं हो रहा है तो संभवतः ये कहीं न कहीं हम अपने कर्मों का फल भुगत रहे है और परमात्मा चाहते हैं की हम इसे भुगत लें। गुरु और परमात्मा के प्रति सच्ची श्रद्धा हमें ऐसे रोगों का सामना करने की शक्ति भी देती  है। वैसे भी शरीर को तो समय के साथ ढलना ही है। आत्मा के शरीर से निकल जाने के बाद ये शरीर तो वैसे भी ख़त्म हो जाता है, मिटटी हो जाता है - ऐसा कहते भी हैं। लेकिन आत्मा तो अजर -अमर है और उसे हमारे शरीर द्वारा किये गए कर्मों का फल भी भुगतना ही है - अधिकांश इसी जन्म में -इसी शरीर के साथ और जो कर्मफल बच जाते हैं वो प्रारब्ध के रूप में आत्मा के नए शरीर के साथ उसके अगले जन्म में।
 
तो क्यों ना हम इस शरीर का, अपने समय का और मिली हुई सांसों का उपयोग ऐसे कर्म करने में करें जिससे हमारी आत्मा को आनंद मिले। और फलस्वरूप हमारी आत्मा का मूल अर्थात वो परम आत्मा भी हमसे प्रसन्न हो जाए। इस सन्दर्भ में एक सरल मार्ग निस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा है, मदद है। ऐसे कर्मों का फल हमारे लिए सुख और समृद्धि लाएगा। और इसी सन्दर्भ में महाराज जी ने अपने उपदेशों का माध्यम से हमें अपना जीवन सार्थक बनाने का मार्ग दिखाया है - उस परम आत्मा को प्रसन्न करने का मार्ग दिखाया है। अब हम उनके उपदेशों पर चल पाते हैं या नहीं या कितना चल पते हैं- ये हमारे ऊपर निर्भर करता है। विश्वास करें ऐसा करना इतना कठिन भी नहीं है इसलिए कोशिश अवश्य करें तदनुसर हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और विशेषकर शांति आएगी। तब भी जब हम ये जानते हैं की हमारा समय , हमारी सांस और हमारा शरीर भी शरीर उस सर्व शक्तिशाली, सर्वज्ञ और सर्व -व्यापी परम आत्मा के ही हैं।
 
महाराज जी सबका भला करें!

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