कर्म से नरक और कर्म से ही शुभ गती होती है

 
तुम्हारा पैदायशी दोष है। कर्म से नरक, कर्म से ही शुभ गती होती है। थोड़े दिन जो बताया है, मन से जबरदस्ती करके चल परो, कल्याण हो जाय। रोज चिडि़यन को आटा, गुड़ चीटियों को दिया करो। तुम घर की मालकिन हो, सब को खुश रक्खोगी, भगवान तुमसे खुश होंगे आर्शीवाद भेज देंगे। महाराज जी ये उपदेश संभवतः किसी ऐसी महिला भक्त को दे रहे हैं जो अपने प्रारब्ध काट रही हैं, दुखी हैं, और महाराज जी से ऐसे समय से उबरने का मार्ग चाहतीं हैं।
 
सब कुछ हमारे कर्मों पर ही निर्भर करता है। जाने -अनजाने में जो कर्म पहले किये हुए हैं (पिछले जन्मों के भी), विशेषकर बुरे -वर्तमान में उनका फल भुगतते समय तकलीफ तो होती ही है। स्थिति यदि ऐसी हो जिसे सुधार सकना हमारे बस के बाहर हो तो पीड़ा कभी -कभी अधिक भी हो जाती है। इन परिश्थितियों में तो केवल ईश्वर/हमारे इष्ट का, या महाराज जी का ही सहारा रह जाता है। ईश्वर की लीला तो समझना तो थोड़ा जटिल है, पर हाँ यदि महाराज जी में हमारी पूरी आस्था है, सच्चे मन से उनको पुकारते हैं, उनमें समर्पण का भाव रखते हैं तो वे प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से कोई ना कोई संकेत देकर हमें रास्ता दिखाते अवश्य हैं। महाराज जी हमारे कर्मों के फल या हमारा प्रारब्ध तो नहीं बदलते हैं (कोई नहीं बदल सकता है), पर हाँ प्रारब्ध का सामना करने की हमें हौसला, धैर्य प्रदान कर देते हैं और कभी -कभी ऐसे बुरे कर्मों के फल की तीव्रता भी कम कर देते हैं
 
कुछ ना कुछ सकारात्मक लीला करके और पहले किये गए अच्छे कर्मों के फल या प्रारब्ध से हमें सुख मिलता है, प्रसन्नता भी होती है। कम ही सही पर कुछ विरलों को गति मिलना भी संभव है - जैसा महाराज जी हम लोगों को समझा रहे हैं -यदि उनमें ऐसी तृष्णा है/रही है और उन्होंने इस दिशा में असाधारण धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ कर्म किये होंगे। दिव्य गुरु के मार्ग दर्शन के बिना तो ऐसा होना संभव ही नहीं है। गति होने पर तो जन्म -मरण, दुःख -सुख के चक्र से ही मुक्ति मिल जाती है। जब किसी परिवार में कोई मुसीबत पड़ती है या वैसे भी, तो ऐसा भी देखा जाता है कि घर के ज़िम्मेदार लोग, क्रोध में या धैर्य खोकर, परिवार के और लोगों के साथ कभी -कभी अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं। और ऐसे में अपनी वाणी से वे अपनों को दुःख पहुंचाते हैं। ऐसा करने से हमें बचना चाहिए। ये भली- भांति समझते हुए की कभी -कभी ऐसा करना कठिन हो जाता है, पर यदि हम परिवार में बड़े हैं तो अपने व्यव्हार के प्रति जाग्रत रहते हुए ऐसी परिस्थितियां, ना हो या कम से कम हों, ऐसे प्रयत्न हमें करना चाहिए। नहीं तो ईश्वर द्वारा ऐसे कर्मों का फल देते समय हमें कभी -कभी अधिक पीड़ा हो सकती है।
 
घर के बड़े और ज़िम्मेदार लोगों की परिपक्वता और धैर्य ही उनको शोभा देता है -- ऐसा महाराज जी हमें यहाँ पर समझा रहे हैं।महाराज जी आगे कहते हैं की घर में कम नकारात्मकता का वातावरण बनाए रखने में, घर के लोगों को एक -जुट रखने के, उन्हें खुश रखने के हमारे प्रयासों से वो परम आत्मा प्रसन्न होता है। उनका आशीर्वाद भी मिलता है। ऐसा होने पर महाराज जी के भक्तों के घरों में इसका बहुत ही सकारात्मक असर पड़ेगा। जीवन के उतार -चढावों के बीच में भी पशु -पक्षियों के साथ करुणा, उनको अपने सामर्थ अनुसार खाना- खिलाने से ईश्वर और महाराज जी विशेष प्रसन्न होते हैं। ऐसा कर्मों का फल भी महाराज जी के भक्तों के लिए सकारात्मक होगा, शुभता लाएगा। जैसा महाराज जी हमें नियमित रूप से समझाते रहते हैं, सच्चे भाव से परमार्थ और सामर्थ अनुसार परस्वार्थ ही जीवन जीने का सही मार्ग है।
 
हममें से अधिकतर लोग अनजाने में या बिना सोचे -समझे कर्म करते हैं। और इस तरह किये गए कर्मों का फल हमारे लिए अंततः अच्छा तो नहीं ही होता है। इसलिए जैसा हम इस पटल पर नियमित रूप से चर्चा करते रहते हैं जितना हो सके, महाराज जी के भक्तों के लिए अच्छा है कि कर्म करने के पहले वे एक क्षण सोचें कि: जो हम कर रहे हैं वो क्यों कर रहे हैं ??? क्या इस कर्म के फल से अंततः हमारा कल्याण होगा ?? ये करना बहुत कठिन नहीं है - बस थोड़े अभ्यास की आवश्यकता है। अतः अपने सुख के लिए, अपनी ही शांति के लिए कर्म करने के पहले इस तरह जाग्रत रहने से हमारा कल्याण होगा। और महाराज जी उपदेशों पर चलने से तो हमारा कल्याण निश्चित है। कभी -कभी महाराज जी के उपदेशों पर चलना आसान नहीं हो पाता है। लेकिन जो धैर्य के साथ प्रयत्न करते रहते हैं (मन से जबरदस्ती करते हैं जैसे महाराज जी ने ऊपर कहा है)-उनका भला तो हो ही जाता है।
 
महाराज जी सबका भला करें।

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