प्रसन्न रहने का चुनाव करना, ये हर इंसान के अपने ऊपर निर्भर करता है

राम -नाम सुमिरन करो, राखो सबसे मेल।

दीन नाथ दयालु से, हो जावेगा मेल।

ये संसार उस परम-आत्मा की ही रचना है। हम सब आत्माएं इस संसार में माँ की कोख से आते हैं और अर्थी पर चढ़ कर चले जाते हैं और इस दौरान हमारे जीवन में एक सेर ख़ुशी और तीन सेर ग़म होता है। हम से अधिकतर लोगों का यही हाल है लेकिन कुछ लोग इससे हटकर, उस सर्वशक्तिशाली, सर्वव्यापी और सर्वज्ञ परम -आत्मा की प्राप्ति, उनके समीप जाना चाहते हैं। 

संभवतः इसलिए क्योंकि परमात्मा की प्राप्ति से बार -बार इस संसार में आने -जाने से मुक्ति तो मिलेगी ही और इसके साथ ही साथ परम आनंद की प्राप्ति भी होगी। परन्तु वहां तक पहुँचने के पहले, इसी संसार में रहते हुए सुख, समृद्धि और शांति भी प्राप्त हो सकती है। महाराज जी ये उपदेश संभवतः उन्ही लोगों को दे रहे हैं। किसी को प्रसन्न करना प्रायः कठिन काम होता है क्योंकि प्रसन्न होना, प्रसन्न रहने का चुनाव करना, ये हर इंसान के अपने ऊपर निर्भर करता है (व्यक्तिगत है)। कोई दूसरा ये काम नहीं कर सकता लेकिन अपने स्वार्थ के लिए दूसरे को दुःख ना पहुँचाना, ज़ोर-ज़बरदस्ती ना करना, अपने -परायों की आँखों में आंसू ना लाना विशेषकर अपनी ज़बान से

अर्थात दूसरों के साथ मेल रखना -ये हमारे ऊपर ही निर्भर करता है। महाराज जी कहते हैं की यदि हम ऐसा कर पाते हैं तो ईश्वर प्राप्ति का मार्ग आसान हो जाता है। अनजाने में यदि हमसे दूसरों को दुःख पहुंचाने की गलती हो भी जाए तो जिसके साथ हमने ऐसा किया है, उससे क्षमा मांगकर यदि हम अपने आप से ये तय करते हैं कि हम आगे इस बारे में सचेत रहेंगे की हमसे ऐसा ना हो या कम से कम हो - ऐसे प्रयत्न करने से ईश्वर भक्ति में हमारे सच्चे भाव उत्पन्न होना संभव है। और हाँ, इस पथ पर चलने का संकल्प और फिर धैर्य से यदि हम,एक पग चलेंगे तो महाराज जी तीन पग चलकर हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं ।

एक बार सच्चे भाव उत्पन्न होना आरंभ हो जाएगा तो हम सच्चे ही मन से उस परम आत्मा का नाम भी ले सकेंगे। और ईश्वर का सच्चे मन से नाम जपने का महत्त्व तो हमारे ऋषि -मुनियों ने हज़ारों सालों से हमें समझाया है तो महाराज जी यहाँ पर हमें समझा रहे हैं की उस परम आत्मा की, अपने इष्ट की या (जैसे यहाँ पर) श्री राम की सच्ची भक्ति करने के लिए - हमें सच्चे मन से उनके नाम का सुमिरन करना है और सबसे मेल से रहना है। विकारों में उलझे जीव के लिए ये इतना सरल नही है लेकिन फिर ईश्वर प्राप्ति का मार्ग भी तो सरल नहीं है …… इच्छुक लोग कोशिश तो कर ही सकते हैं। यदि कोशिश ईमानदार है तो महाराज जी का आशीर्वाद भी मिलेगा।

महाराज जी सबका भला करें!

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