एडीपी ने क्षेत्रीय असमानता को कैसे दूर किया-- अमिताभ कांत

 

दुर्गम पहाड़ी इलाके में स्थित नागालैंड का किफिर भारत के सबसे दूरस्थ जिलों में से एक है। जिले के अधिकतर लोग कृषि और इससे जुड़े काम करते हैं। उन्हें खोलर या राजमा की खेती करना अधिक पंसद है। स्थानीय लोगों की आजीविका बढ़ाने के लिए खोलर की खेती की संभावना को देखते हुए 2019 में आकांक्षी जिला कार्यक्रम के माध्यम से इसकी पैकेजिंग सुविधा स्थापित की गई थी। यह सुविधा किसानों के बीच बड़ी तेजी से लोकप्रिय हुई थी। तब से, बड़े पैमाने पर खोलर की खेती शुरू हो गई है और किफिर के राजमा अब पूरे देश में जनजातीय कार्य मंत्रालय के पोर्टल TribesIndia.com पर बेचे जा रहे हैं।

 

इसी तरह की सफलता की दास्तान 112 जिलों में भी हैं, जो 2018 में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए आकांक्षी जिला कार्यक्रम (एडीपी) का हिस्सा हैं। शुरुआत से ही एडीपी ने भारत के कुछ सबसे पिछड़े और दूरदराज के जिलों में विकास को बढ़ावा देने की दिशा में लगातार काम किया है। इस वर्ष के शुरु में यूएनडीपी ने इस कार्यक्रम की सराहना करते हुए 'स्थानीय क्षेत्र के विकास का अत्यंत सफल मॉडल' बताया और कहा कि 'इसे ऐसे अन्य देशों में भी अपनाया जाना चाहिए, जहां अनेक कारणों से विकास में क्षेत्रीय असमानताएं रहती हैं' वर्ष 2020 में प्रतिस्पर्धात्मकता संस्थान ने भी भारत के सबसे कम विकसित क्षेत्रों के इस कार्यक्रम के दूरगामी प्रभाव को सराहा था। कार्यक्रम की शुरूआत से ही सकारात्मक सामाजिक और आर्थिक प्रभाव के साथ ही स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के राउंड 5 के चरण 1 के अनुसार प्रसवपूर्व देखभाल, संस्थागत प्रसव, बाल टीकाकरण, परिवार नियोजन की विधियों का उपयोग जैसे महत्वपूर्ण स्वास्थ् देखभाल क्षेत्रों में आकांक्षी जिलों में अपेक्षाकृत तेजी से सुधार हुआ है। इसी तरह से इन जिलों में बुनियादी ढांचागत सुविधाएं, बिजली, स्वच्छ ईंधन और स्वच्छता के लक्ष् भी अपेक्षाकृत तेजी से हासिल किए गए हैं।

 

इस कार्यक्रम से पांच क्षेत्रों: स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, कृषि और जल संसाधन, बुनियादी ढांचा, वित्तीय समावेशन और कौशल विकास के 49 प्रमुख निष्पादन संकेतकों (केपीआई) पर जिलों के प्रदर्शन को ट्रैक कर और रैंक देकर इन उपलब्धियों को हासिल किया गया है। एडीपी का ध्यान इन जिलों के शासन में सुधार पर केंद्रीत होने से केवल सरकारी सेवाएं प्रदान करने में सुधार हुआ है, बल्कि स्वयं इन जिलों द्वारा ऊर्जावान और अभिनव प्रयास भी किए गए। एडीपी तैयार करने में दो महत्वपूर्ण वास्तविकताओं को ध्यान में रखा गया है। पहला, निधि की कमी ही पिछड़ेपन का एकमात्र या प्रमुख कारण नहीं है क्योंकि खराब शासन के कारण मौजूदा योजनाओं (केंद्र और राज्य दोनों की) के तहत उपलब्ध कोष का बेहतर तरीके से उपयोग नहीं किया जाता है। दूसरा, लंबे समय से इन जिलों की उपेक्षा किए जाने के कारण जिला अधिकारियों में उत्साह कम हो गया है। असल में इन जिलों की क्षमता को उजागर करने में आंकड़ो पर आधारित शासन से इस मानसिकता को समाप् करना महत्वपूर्ण है।

 

कार्यान्वयन के तीन वर्ष में ही कार्यक्रम के जरिए संमिलन (केंद्र और राज्य की योजनाओं के बीच), सहयोग (केंद्र, राज्य, जिला और विकास साझेदारों के बीच) और प्रतिस्पर्धा (जिलों के बीच) के अपने मूल सिद्धांतों के माध्यम से कई क्षेत्रों में पर्याप्त सुधार लाने के लिए उचित संस्थागत ढांचा उपलब् कराया गया है। एडीपी के माध्यम से सरकार केवल सुव्यवस्थित समन्वय के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रही है, बल्कि लक्ष् हासिल करने के लिए उचित प्रयास भी कर रही है। नीति आयोग द्वारा विकसित एडीपी का चैम्पियंस ऑफ चेंज प्लेटफॉर्म का स्वसेवा विश्लेषण उपकरण जिला प्रशासन के लिए मददगार है। इससे उन्हें आंकड़ों का विश्लेषण करने और स्थानीय क्षेत्र की लक्षित योजनाएं तैयार करने में सहायता मिलती है। इस प्लेटफॉर्म से यह सुनिश्चित किया जाता है कि कार्यक्रम की डेल्टा रैंकिंग में अपनी स्थिति सुधारने के लिए जिले लगातार एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करें। प्रतिस्पर्धा से बेहतर सेवा प्रदान करने के लिए लगातार नए विचारों को तलाशा जाता है।

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