सच्चे भाव केवल जय जयकार करने से नहीं आते

  
हरि में -गुरु में भेद नहिं, जो हरि सन्मुख होय।
कहन -सुनन की बात नहिं, जानि लेय सो होय ॥
 
महाराज जी यहाँ पर हमें संभवतः ये समझा रहे हैं की अपने इष्ट की (यहाँ पर हरि) या सद्गुरु की भक्ति में अंतर नहीं है ये समान है जैसे -जैसे प्रयास के उपरांत अपने इष्ट के लिए, सद्गुरु के लिए हमारे प्रेम, हमारी भक्ति में सच्चे भाव आते जाएंगे वैसे -वैसे उनकी कृपा का आभास हमें होने लगेगा ये केवल कहने की बात नहीं है ऐसा संभव है आज भी !! और ऐसी अनुभूति जिसे हो जाए उसे उसका बखान करने से बचना चाहिए क्योंकि ये निजी होती है।
 
सामान्य भक्तों ने ईश्वर के दर्शन नहीं किये होते हैं, पर वह सर्वशक्तिशाली ईश्वर जो इस ब्रम्हांड का संचालन करता है, वह अपनी रचना अर्थात इस ब्रम्हांड में सब जगह है, हर जीव -जंतु में उसका अंश है, सब में व्याप्त है -तभी उसे सर्वव्यापी भी कहते हैं परन्तु सर्वप्रथम वो हमारे महाराज जी जैसे सिद्ध संतों में है ऐसे सद्गुरु की वाणी -ईश्वर की ही वाणी होती है, यदि हम सुनना चाहें तो (तदुपरांत अपने जीवन में सुख और शांति लाना चाहें तो …..) सम्भवतः इसीलिए कुछ भक्तों के लिए हमारे महाराज जी परब्रम्ह हैं, कुछ भक्त तो उन्हें गुरु -भगवान कहते भी हैं। महाराज जी की भक्ति में सच्चे भाव केवल उनकी जयजयकार करने से नहीं आते हैं। उनका भजन -कीर्तन -सत्संग इत्यादि करना अच्छी बात है पर ऐसे समय में मन को उन्ही की ओर केंद्रित करना पड़ता है जो थोड़े से प्रयास से संभव है
 
यदि इच्छाशक्ति हो तो (ऐसे प्रयास की चर्चा हम इस पटल पर करते भी रहते हैं)…. भक्ति में दिखावा और प्रदर्शन करने से प्रयास व्यर्थ भी हो जाते है। महाराज जी की भक्ति में सेवा भाव सबसे ऊपर है !! निस्वार्थ भाव से वंचितों की मदद करनी होती है, अपने सामर्थ के अनुसार पर बिना कोई प्रचार किये। वंचित की जाति और धर्म के बारे में सोचना भी गलत है क्योंकि महाराज जी ने जात -पात का सदैव विरोध किया है। उनके उपदेशों पर पर चलने के ईमानदारी से प्रयत्न करने होंगे जिसमें मुख्य है किसी को अपने/अपनों के स्वार्थ के लिए दुःख नहीं देना, विशेषकर अपनी वाणी से और ईमानदारी की रोटी ही खानी है
 
अब ये निर्णय हमें लेना है की ऐसा करना हमारे लिए कठिन है या ये करना संभव है और यदि संभव है तो इस मार्ग पर छोटे-छोटे कदम बढ़ाने होंगे- धैर्य के साथ पर नियमित रूप से। यदि हम ऐसा कर पाते हैं तो महाराज जी के लिए हमारे भावों में सच्चाई स्वतः आने लगेगी और हम उनकी की कृपा के पात्र भी बन पाएंगे जीवन के सभी उतार -चढाव में महाराज जी हमारे साथ होंगे इससे बड़ी कृपा किसी भक्त के लिए भला और क्या हो सकती है। महाराज जी सबका भला करें।

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