बिना किसी अपेक्षा के हमें ज़रूरतमंद की मदद करनी चाहिए
महाराज जी भक्तों को उपदेश दे रहे हैं कि: जिससे कोई सम्बन्ध न हो, वह बीमार हो उसकी सेवा करना, ये बड़े धर्म का काम है| महाराज जी (हमारे महाराज जी के गुरु) ने बताया था। (हमारे
महाराज जी फिर आगे बता रहे हैं कि)- हम पुलिस में जाकर कह देते थे। उसे
लाते, सेवा करते, ठीक हो जाता तो उसे घर भेज देते, मर जाता तो सरयू में
पधरा (प्रवाह कर) देते।
ऐसा
तो संभवतः कम ही लोग करें की बीमार या वंचित लोगों को ढूंढने का प्रयत्न
करना, उनकी सेवा करना और ठीक होने पर ही जाने देना। लेकिन ऐसा भी नहीं है
केवल महाराज जी जैसे सिद्ध लोग ही ऐसा करते हैं। हमारे आस- पास कुछ आम लोग
भी ऐसी निस्वार्थ सेवा करते मिल जाएंगे। ऐसे कर्म करके वे ईश्वर के प्रिय
हो जाते हैं। महाराज जी संभवतः हमें यहाँ पर एक
सामान्य मनुष्य के द्वारा करने लायक उदाहरण से ये समझा रहे हैं की सड़क पर,
घर के बाहर इत्यादि यदि महाराज जी के भक्तों को उस सर्वशक्तिशाली ईश्वर
द्वारा बनाई गई हमारे ही जैसी कोई आत्मा (मनुष्य, पशु भी) मिल जाये जो
बीमार हो, ज़रूरतमंद हो और जिसकी हम मदद करने में हम सक्षम भी हों (धन से ही
नहीं -किसी भी तरह से), तो उसकी मदद हमें करनी चाहिए, उस ज़रूरतमंद से बिना
किसी अपेक्षा के, और मदद के अपने कर्म का प्रचार किये बिना।
महाराज
जी कहते हैं की ऐसा कर्म करना, बहुत ही बड़े धर्म का कर्म है। कुछ बार तो
महाराज जी ने ऐसे कर्मों की तुलना पूजा- पाठ, भजन- कीर्तन, कथा, सत्संग
इत्यादि से की है। उन्होंने कहा है -ये कर लिया तो समझ लो हो गयी पूजा। हमारे
ऐसे निस्वार्थ सेवा के कर्म, मदद के कर्म को वो परम आत्मा भी देखता है
क्योंकि वो तो सब जगह है, सबमें है (ज़रूरतमंद में भी), सर्वयापी है। इससे
वह प्रसन्न होता है। और हमारे अहंकार रहित ऐसे कर्मों का फल भी वो हमें
अपने ही नियमों के अनुसार अवश्य देता है। हमें महाराज जी का आशीर्वाद भी
मिलता है। महाराज जी के भक्तों को भला और क्या चाहिए।
महाराज जी सबका भला करें।