प्रेम और ममता में तो दूर-दूर तक कोई समानता नहीं है
ममता शब्द मम से बना है, मम यानि मेरे पन का भाव संसार में बहुत लोग ममता का अर्थ प्रेम समझते हैं। प्रेम और ममता में तो दूर-दूर तक कोई समानता नहीं है। प्रेम व्यक्ति को आनंद देता है ममता कष्ट देती है। ममता में मालकियत है, अधिकार है और इसी मैं-मेरे पन के कारण लोग दुःख पा रहे हैं। मैं मेरेपन रुपी ममता से मुक्त हो जायें, ताकि सच्चा प्रेम जन्म ले सके।
ये संसार-परिवार, वस्तुएं- साधन, पेड़-पौधे, नदी-वन ये सब परमात्मा की है आप केवल त्यागपूर्ण उपभोगी रहो। जहाँ आप इन्हें अपना मानना शुरू करते हो, वहीँ से तकलीफ शुरू होती है समस्या किसी को भी अपना मानने से ही शुरू हो जाती है। ईश्वर के अलावा दुनिया में कौन अपना हो सकता है। महाभारत और गीता में ममता का त्याग करने को ही सुख के लिये जरूरी बताते हैं।
द्वयक्षरस् तु भवेत् मॄत्युर् , त्रयक्षरमं ब्रम्ह शाश्वतम् ।
'मम' इति च भवेत् मॄत्युर, 'नमम' इति च शाश्वतम् ॥
(महाभारत शांतिपर्व)
मॄत्यु यह दो अक्षरों का शब्द है तथा ब्रह्म जो शाश्वत है वह तीन अक्षरों का है। 'मम' यह भी मॄत्यु के समानही दो अक्षरोंका शब्द है तथा 'न मम' यह शाश्वत ब्रह्म की तरह तीन अक्षरोंका शब्द है।
अद्वेष्टा सर्वभूतानाँ मैत्रः करुण एव च।
निर्ममो निरहंकारः सम दुःख सुखः क्षमी॥
इस प्रकार शान्ति को प्राप्त हुआ जो पुरुष, सब भूतों में द्वेषभाव से रहित एवं स्वार्थ रहित सबका प्रेमी और हेतु रहित दयालु है तथा ममता से रहित एवं अहंकार से रहित, सुख दुःखों की प्राप्ति में सम और क्षमावान् है अर्थात् अपराध करने वाले को भी अभय देने वाला है।