जो स्वयं में स्थित है वही स्वस्थ है

 
आत्म-मंथन वर्तमान समय में हर आदमी आपको यह कहता हुआ मिलेगा, कि लोग उसे समझ नहीं रहे हैं तो यह चिंता का विषय बिल्कुल भी नहीं है। तुम स्वयं अपने आपको अगर नहीं समझ पा रहे हो, तो यह जरूर चिंता का विषय है। प्रकृति ने सबको अलग स्वभाव,अलग उद्देश्य और अलग आदतें प्रदान की हैं। हर आदमी अपने जैसे स्वभाव वाला समान उद्देश्य वाला व्यक्ति ही ढूँढता है।
 
एक प्रकार से कहें कि वह खुद अपने अक्स को हर शख़्स में देखना चाहता है। यहीं से सही-गलत की धारणाएं प्रारम्भ हो जाती हैं, जो दुःख ना होने पर भी, दुःख का अकारण आभास कराती रहती हैं। दूसरों को ज्यादा जानने में व्यक्ति स्वयं से बहुत दूर हो जाता है। स्वस्मिन् तिष्ठति इति स्वस्थः जो स्वयं में स्थित है वही स्वस्थ है ख़ुद को जाने बिना ईश्वर को नहीं जाना जा सकता शान्त मन हमारी आत्मा की ताकत है, शान्त मन में ही ईश्वर विराजते हैं जब पानी उबलता है, तो हम उसमें अपना प्रतिबिम्ब नहीं देख पाते जबकि शाँत पानी में हम खुद को देख सकते हैं ठीक वैसे ही हृदय जब शाँत रहेगा, तभी हम आत्मा के वास्तविक स्वरुप को देख सकते हैं।

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