यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान


 
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान...

सीस दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान...

कबीर दास जी यहाँ पर गुरु का महत्व समझाते हुए कहते हैं कि यह शरीर नश्वर है जो अज्ञानता और अनेकों विकार रुपी विष से भरा हुआ है जो हमें दुःख और पीड़ा देते रहते हैं। ये हमारा शरीर पांच तत्वों का बना हुआ है (पृथ्वी, वायु, आकाश अथवा शून्य, अग्नि और जल) और आत्मा के प्रस्थान (मृत्यु) के उपरांत आत्मा का वस्त्र अर्थात हमारा शरीर इन्ही पांचों तत्वों में ही विलीन हो जाता है।
 
तदुपरांत शरीर का कोई महत्त्व नहीं होता है। इस शरीर का अपना कोई ज्ञान भी नहीं होता। जबकि गुरु का महत्व उस अमृत की खान के समान है जिसमे असीमित ज्ञान है। गुरु से प्राप्त ज्ञान के बदले यदि शिष्य को अपने जीवन को भी त्यागना पड़े (अर्थात गुरु के ज्ञान पर, उपदेशों पर चलने में हमें यदि बहुत कठिनाइयों का सामना भी करना पड़े)- तो भी यह सौदा सस्ता ही है, क्योंकि गुरु से प्राप्त मार्गदर्शन की मदद से हम ना केवल वर्तमान जन्म को बल्कि आने वाले कई जन्मों को भी सार्थक बना पाएंगे, सुखी कर पाएंगे।
 
ये हमारा सौभाग्य है की इस जन्म में हमें गुरु महाराज जी का साथ मिला है। महाराज जी ने अनेक प्रकारों से हमें सार्थक जीवन जीने का रास्ता दिखाया है- ज्ञान/उपदेश के माध्यम से भी। अब हमारे ऊपर है हम किस हद तक महाराज जी के ज्ञान को अपना पाते हैं, उनके उपदेशों पर चल पाते हैं और विकार रूपी हमारे शरीर के विष पर अंकुश लगा पाते हैं। जितनी अधिक कोशिश करेंगे उतना ही हमारे जीवन में शांति आएगी। जीवन सफल होगा। जीवन में आनंद आएगा।

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