माता पिता इस जगत के साक्षात देवता हैं

 
सफलता के लिये विघ्न ही सबसे बड़ा बाधक होता है। शान्तचित्त होकर चिन्तन करने से ही विघ्नों को दूर करने के समाधान मिलते हैं माता पिता इस जगत के साक्षात देवता हैं। उनके प्रति श्रद्धा, सेवा और सम्मान ही पुत्र को ऋण मुक्त करता है। भगवान गणपतिजी प्रथम पूज्य कैसे बने पुराणों के अनुसार एक बार भगवान शंकर के यहाँ उनके दोनों पुत्रों में होड़ लगी कि कौन बड़ा निर्णय लेने के लिये दोनों शिव-पार्वती के पास गये।
 
शिव-पार्वती ने कहा, “जो संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले पहुँचेगा, उसी का बड़प्पन माना जायेगा। कार्तिकेय तुरन्त अपने वाहन मयूर पर निकल गये पृथ्वी की परिक्रमा करने। गणपति जी चुपके-से एकांत में चले गये। थोड़ी देर शांत होकर उपाय खोजा तो झट से उन्हें उपाय मिल गया। जो ध्यान करते हैं, शांत बैठते हैं उन्हें अंतर्यामी परमात्मा सत्प्रेरणा देते हैं। अतः किसी कठिनाई के समय घबराना नहीं चाहिए बल्कि भगवान का ध्यान करके थोड़ी देर शांत बैठो तो आपको जल्द ही उस समस्या का समाधान मिल जायेगा। फिर गणपति जी आये शिव-पार्वती के पास। माता-पिता का हाथ पकड़ कर दोनों को ऊँचे आसन पर बिठाया, पत्र-पुष्प से उनके श्रीचरणों की पूजा की और प्रदक्षिणा करने लगे।
 
एक चक्कर पूरा हुआ तो प्रणाम किया.... दूसरा चक्कर लगाकर प्रणाम किया.... इस प्रकार माता-पिता की सात प्रदक्षिणा कर ली। शिव-पार्वती ने पूछा, “ वत्स! ये प्रदक्षिणाएँ क्यों की?” गणपति ने कहा, “सर्वतीर्थमयी माता... सर्वदेवमयो पिता... सारी पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जो पुण्य होता है, वही पुण्य माता की प्रदक्षिणा करने से हो जाता है, यह शास्त्रवचन है। पिता का पूजन करने से सब देवताओं का पूजन हो जाता है। पिता देवस्वरूप हैं। अतः आपकी परिक्रमा करके मैंने संपूर्ण पृथ्वी की सात परिक्रमाएँ कर लीं हैं। तब से गणपति जी प्रथम पूज्य हो गये। शिव-पुराण में आता हैः-
 
पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रक्रान्तिं च करोति यः। तस्य वै पृथिवीजन्यफलं भवति निश्चितम्।। अपहाय गृहे यो वै पितरौ तीर्थमाव्रजेत। तस्य पापं तथा प्रोक्तं हनने च तयोर्यथा।।
पुत्रस्य य महत्तीर्थं पित्रोश्चरणपंकजम्। अन्यतीर्थं तु दूरे वै गत्वा सम्प्राप्यते पुनः।।
इदं संनिहितं तीर्थं सुलभं धर्मसाधनम्। पुत्रस्य च स्त्रियाश्चैव तीर्थं गेहे सुशोभनम्।।
 
जो पुत्र माता-पिता की पूजा करके उनकी प्रदक्षिणा करता है, उसे पृथ्वी-परिक्रमाजनित फल सुलभ हो जाता है। जो माता-पिता को घर पर छोड़ कर तीर्थयात्रा के लिये जाता है, वह माता-पिता की हत्या से मिलने वाले पाप का भागी होता है क्योंकि पुत्र के लिये माता-पिता के चरण-सरोज ही महान तीर्थ हैं। अन्य तीर्थ तो दूर जाने पर प्राप्त होते हैं परंतु धर्म का साधनभूत यह तीर्थ तो पास में ही सुलभ है। पुत्र के लिये (माता-पिता) और स्त्री के लिये (पति) सुंदर तीर्थ घर में ही विद्यमान हैं।

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