सेवा-परोपकार करने से बढ़कर कोई धर्म नहीं
महाराज जी भक्तों को उपदेश दे रहे हैं कि
तिल भर भी अन्दर से बैर न हो। दया सब जीवों पर करना। सब जीवों में भगवान हैं। सेवा -परोपकार करने से बढ़कर कोई धर्म नहीं।
तीर्थ करना, व्रत करना, उपवास करना, दान पुण्य करना, हमारे पास आना, भजन करना बेकार है........ सहन शक्ति जब तक नहीं होगी
जब 2 लोगों/पक्षों के बीच कोई समस्या या द्वेष होता है तो इसकी जड़ कोई ना कोई मतभेद या विवाद होता है और ऐसे विवाद के होने में प्रायः दोनों पक्षों का योगदान होता है
लेकिन बाद में एक या दोनों लोग दूसरे को ही दोषी मानते हैं और विवाद के होने अपना योगदान -अपनी सुविधाके अनुसार भूल जाते हैं।
इसके बाद ये परिस्थिति प्रायः बैर में बदल जाती है। महाराज जी के भक्तों को ऐसे दोहरे मानदंड से बचना चाहिए। बैर पालने से स्वयं का कभी भला नहीं होता
जिसने जैसे भी कर्म किये हैं उसे उसका फल मिलता ही मिलता है और ये फल वो परम आत्मा ही देता है क्योंकि वो तो सर्वशक्तिशाली है उसकी असंख्य आँखों से कुछ भी छुप नहीं सकता क्योंकि वो तो सर्वज्ञ है। वो बिना किसी भेदभाव के, अपने ही तरीके हर मनुष्य को उसके कर्मों का फल देता है
फिर हम अपने अंदर बैर क्यों पालें
इससे तो हम अपने अंदर नकारात्मकता का पोषण करेंगे जिससे आगे -पीछे हमारे ही स्वास्थ्य की क्षति होना निश्चित है। इसलिए हमारा कल्याण इसी में है की हम दूसरों को क्षमा करने का प्रयत्न करें -अपनी शांति के लिए
वो परम आत्मा तो सर्व-व्यापी है।
इसलिए उसका अंश इस संसार के सब पशु-पक्षी, जीव जंतुओं में है। इसलिए महाराज जी के उपदेश अनुसार उस परम आत्मा की बनाई प्रत्येक रचना पर हमें दया भाव रखने से, दया भाव रखने का प्रयत्न करने से और आवश्यकता पड़ने पर दूसरों की मदद करने से हमें प्रसन्नता होगी और महाराज जी आशीर्वाद भी मिलेगा महाराज जी ने कई अवसर पर ये दोहराया है कि सेवा धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं है। और जैसा हम सबको ज्ञात है उन्होंने निष्छल और निस्वार्थ भाव के सेवा की बराबरी भजन, सत्संग और पूजा से की है
संघर्ष के समय में तीर्थ करना, व्रत करना, उपवास करना, दान पुण्य करना … यहाँ तक की गुरु के धाम भी बार -बार जाने (गोकुल भवन इस सन्दर्भ में …. जैसे महाराज जी ऊपर विवरण कर रहे हैं) - से हम अपने कर्मों के भोग -भोगने से बच भी नहीं सकते।
जो बोया है उसे तो काटना ही पड़ेगा। अपने कर्मों के भोग भोगने के लिए हमें सहनशक्ति जुटानी पड़ेगी जो ये सब करने से मिलना कठिन है
हाँ यदि हमें अपने किये पर पछतावा है और आगे से ऐसा कुछ ना करने का संकल्प भी लिया है तो महाराज जी की कृपा हम पर अवश्य होगी महाराज जी से हमारी गुहार, महाराज जी के लिए हमारी श्रद्धा, उनके किये हमारे सच्चे भाव से हमें अपने कर्मों के भोग -भोगने की सहनशक्ति अवश्य मिलेगी बस ये मान के चलना है की जो भी हमारे जीवन में हो रहा है वो महाराज जी की मर्ज़ी से है, उनके हुकुम से है और गुज़र भी जाएगा।
महाराज जी सबका भला करें।