अपने स्वभाव में त्याग करने का गुण अपनायें



अपने स्वभाव में त्याग करने का गुण अपनायें उसके लिए इस शरीर का रूप, मान, संबंध और सभी भौतिक प्रवृतियों को त्यागना पड़ेगा।

जीवन के अंत में जो भगवान् का स्मरण करते हुए शरीर छोड़ता है वह जीव अपने सनातन स्वरूप को अर्थात् भगवान् के दिव्य स्वभाव को प्राप्त करता है

जैसे बर्फ को अपना मूल रूप जल पाने के लिये पिघलने का कष्ट सहना पड़ता है 

यानी अपना रूप और कड़कपन त्यागना पड़ता है इसी प्रकार मनुष्य को अंत समय में अगर अपने सनातन स्वरूप को पाना है तो उसे अपने इस शरीर का रूप, मान, संबंध और सभी भौतिक प्रवृतियों को त्यागना पड़ेगा

हर एक जीवन का अंत निश्चित है अतः इस त्याग का अभ्यास भी जरूरी है

इस बात को केवल पढ़ने या सुनने से अंत समय में अपनाया नहीं जा सकता

अतः हमें अपने स्वभाव में त्याग करने का गुण अपनाना होगा मात्र भगवान् का नाम जोर जोर से ले कर भजन करने से इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता।

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