कबीरदास की उलटी वाणी, बरसे कम्बल भींजे पानी
इस संसार में पंडित यानि विद्वान व्यक्ति वो है जो अमृतवाणी यानि जीवन-मरण के बंधन से मोक्ष दिलाने वाणी की खोज में रहता है
बूझो-बूझो पंडित अमृतवाणी।
बरसे कम्बल भींजे पानी।।
अक्सर लोग यह कहकर इस भजन से दूर भागते हैं कि “कबीरदास की उलटी वाणी, बरसे कम्बल भींजे पानी” लोगों को कबीर दास का ये भजन अजीब और जटिल समझ में आता है
इस भजन की विशेषता ये है कि ईश्वर प्राप्ति की साधना की प्रथम सीढ़ी से लेकर ईश्वरानुभूति पाने की अंतिम सीढ़ी तक का वर्णन इस भजन में है
कबीर दास कहते हैं कि इस संसार में पंडित यानि विद्वान व्यक्ति वो है जो अमृतवाणी यानि जीवन-मरण के बंधन से मोक्ष दिलाने वाणी की खोज में रहता है ऐसी वाणियों पर गहराई से समझने-बूझने की जरुरत होती है, तभी वो हमें कोई लाभ दे सकती है।
ईश्वर भक्ति की तरफ हर व्यक्ति नहीं जाता है हर व्यक्ति अपने भीतर सूक्ष्म रूप में विद्यमान संस्कार रूपी कम्बल ओढ़ा हुआ है जिसमें कई जन्म के संस्कार हैं जब ये भक्ति रूपी संस्कार के कम्बल बरसते हैं अर्थात जीवन में सक्रिय व क्रियाशील होते हैं, तब आदमी का ह्रदय भक्ति रूपी जल में भीगने लगता है।
लौकी बूड़े सिल उतराय,
मछली धरि के बगुलहिं खाय,
धरती बरसे सूरज नहाय,
ओरिया का पानी बरेडियाई जाय,
तर भाई घड़ा ऊपर पनिहारी।
बूझो-बूझो पंडित अमृतवाणी।।
ब्रह्मज्ञान यानि भगवान के बारे में जानकारी प्राप्त कर जब व्यक्ति ब्रह्म अनुभूति पाने के लिए भगवान की भक्ति में पूरी लगन से डूब जाता है तो उसके मन के अंदर साधुता के गुण यानि विवेक और वैराग्य पैदा हो जाते हैं और उसकी बगुला भक्ति यानि दिखावे की भक्ति, विवेकी मन समाप्त कर देता है बगुलाभक्ति करने वाले अन्तोगत्वा ईश्वरीय दंड के भागी जरुर बनते हैं, प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में ऐसे बहुत से लोग इस समय जेलों में बंद हैं
भक्त के ह्रदय में जब भक्ति की बरसात होती है तो इस भक्ति रूपी वर्षा में नहाकर सूर्य रूपी यानि प्रकाश रूपी आत्मा के सारे मायिक आवरण हटने लगते हैं मकान की ओरी से नीचे गिरता पानी पीछे मुड़कर बरेड़ी की तरफ जाने लगता है अर्थात भक्ति में सराबोर होने पर संसार की ओर भागता मन पीछे मुड़कर भगवान की ओर जाने लगता है संसार में भक्त रूपी घड़ा और ऊपर शाश्वतधाम में भगवान पनिहारी के रूप में भक्त रूपी घड़े को अपनी ओर खींचने लगते हैं।