भारत सरकार सजा के समाप्त होते ही सभी अधिकार होंगे पूर्ववत लागू- विजय कुमार पाण्डेय

लखनऊ हवलदार विजय कुमार के मामले में सेना कोर्ट लखनऊ की खण्ड-पीठ ने भारत सरकार को निर्देशित करते हुए कहा कि वादी को 13 मार्च, 2018 से सीनियारटी देते हुए, 6 सितंबर, 2018 से सैलरी और अलाउंसेस का एरियर दिया जाए, जिसमे वादी के अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय रहे

मामला यह था कि जब हवलदार विजय कुमार वर्ष 2016 में 411 फील्ड हास्पिटल में तैनात था तब उसे सेना का अनुशासन तोड़ने के आरोप में गलत सजा सुनाई गई, जिसके खिलाफ उसने 23 अक्टूबर, 2017 को जी०ओ०सी० हेडक्वार्टर को अपील की लेकिन उस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया तब उसने दिल्ली हाई-कोर्ट में याचिका दाखिल की जिसमें कोर्ट ने निर्देशित किया कि अपील पर निर्णय लिया जाए, फिर भी कोई निर्णय नहीं लिया गया, तब उसने दिल्ली हाई कोर्ट में अवमानना की कार्यवाही शुरू की, उसके बाद कमांडिंग आफिसर के निर्णय को 6 सितंबर, 2018 को जी०ओ०सी० हेडक्वार्टर ने गलत मानते हुए ख़ारिज कर दिया, लेकिन बताते चलें कि इसी बीच वादी का प्रमोशन आ गया जिसे यह कहकर नकार दिया गया कि वह सजायाफ्ता है इसलिए उसे प्रमोशन नहीं दिया जा सकता, सजा समाप्त होने के बावजूद प्रमोशन आर्डर को सेना द्वारा दबाए रखा गया, सेना के उच्च-अधिकारियों से पत्राचार के बाद 404 फील्ड हास्पिटल कमांडिंग आफिसर ने 6 फरवरी, 2019 को प्रमोशन दिया और उसे एम०ए०सी०पी० हवलदार दिया जबकि उसे सब्सटेंटिव हवलदार का पद 18 मार्च, 2018 से दिया जाना चाहिए था

इस विलंब के पीछे कारण यह था कि वादी का लाकर तुड़वाकर उसका सामान चोरी करवा दिया गया था, जिसका आरोप कमांडिंग आफिसर पर था, और वह किसी भी कीमत पर प्रमोशन देने को तैयार नहीं था होंगे वादी ने अपने साथ हुए इस अन्याय के खिलाफ वर्ष 2019 में अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय के माध्यम से सेना कोर्ट में वाद दायर किया और मांग की कि उसे 6 सितंबर, 2018 से हवलदार के पद पर मानते हुए 18 मार्च, 2018 से सीनियारिटी दी जाए l वादी के अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने वादी का जोरदार पक्ष रखते हुए कहा कि गलत तरीके से दी गई सजा जब समाप्त हो गई तो वादी के प्रमोशन का अधिकार उसी दिन से बनता है जिस दिन प्रमोशन आया था, प्रमोशन देने में यदि कोई बिलंब हुआ है तो इसके लिए सेना जिम्मेदार है, न कि वादी, विजय कुमार पाण्डेय ने कहा कि गलत सजा देकर वादी के मौलिक अधिकार को छीनने का अधिकार किसी को भी नहीं है, सजा का आदेश निरस्त होने का आशय यही होता है कि व्यक्ति अपनी पूर्व स्थिति में आ गया और उसे सभी अधिकार उसी दिन से मिलने चाहिए, लेकिन वादी के साथ ऐसा नहीं हो रहा है जो किसी भी रूप में उचित नहीं है, विपक्षी के जबर्दस्त विरोध को दरकिनार करते हुए न्यायमूर्ति उमेश चन्द्र श्रीवास्तव और वाईस एडमिरल अभय रघुनाथ कार्वे की खण्ड-पीठ ने 18 मार्च, 2018 से वादी को हवलदार का प्रमोशन देते हुए सैलरी और अलाउंसेस का एरियर चार महीने के अंदर दिए जाने का आदेश दिया और आगे यह भी कहा कि यदि सरकार नियत समय में आदेश का पालन नहीं करती तो उसे वादी को आठ प्रतिशत व्याज भी देना होगा होंगे

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