अच्छाइयाँ देखिए अच्छाइयाँ फैलेंगी


जिसके पास अच्छाई देखने का सद्गुण मौजूद है, वह पुरूष अपने चरित्र की प्रभा से दुराचारी को भी सदाचारी बना देता है। अच्छाइयाँ देखिए अच्छाइयाँ फैलेंगी, जैसा हम देखते, सुनते या व्यवहार में लाते हैं, ठीक वैसा ही निर्माण हमारे अंतर्जगत् का होता है जो जो वस्तुएँ हम बाह्य जगत् में देखते हैं, हमारी अभिरूचि के अनुसार उनका प्रभाव पड़ता है।

प्रत्येक अच्छी मालूम होने वाली प्रतिक्रिया से हमारे मन में एक ठीक मार्ग बनता है, क्रमशः वैसा ही करने से वह मानसिक मार्ग दृढ़ बनता जाता है। अंत में वह आदत बनकर ऐसा पक्का हो जाता है कि मनुष्य उसका क्रीतदास बना रहता है। जो व्यक्ति अच्छाइयाँ देखने की आदत बना लेता है, उसके अंतर्जगत् का निर्माण शील, गुण, दैवी तत्वों से होता है उसमें ईर्ष्या , द्वेष, स्वार्थ की गंध नहीं होती सर्वत्र अच्छाइयाँ देखने से वह स्वयं शील गुणों का केंद्र बन जाता है।

अच्छाई एक प्रकार का पारस है जिसके पास अच्छाई देखने का सद्गुण मौजूद है, वह पुरूष अपने चरित्र की प्रभा से दुराचारी को भी सदाचारी बना देता है उस केंद्र से ऐसा विद्‍युत प्रवाह प्रसारित होता हैं, जिससे सर्वत्र सत्यता का प्रकाश फैलता है नैतिक माधुर्य जिस स्थान पर एकीभूत हो जाता है, उसी स्थान में समझ लो कि सच्चा माधुर्य तथा आत्मिक सौंदर्य विद्‍यमान है अच्छाई देखने की आदत सौंदर्यरक्षा एवं शीलरक्षा दोनों का समन्वय करने वाली है यदि संसार में लोग विवेक से नीर–क्षीर अलग करने लगें और अपनी दुष्प्रवृत्तियों को निकाल दें, तो सतयुग आ सकता है।

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