मां चंद्रघंटा सच्चे और एकाग्र भक्तों के कष्टों का निवारण तुरंत करती हैं
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा के स्वरूप की आराधना की जाती है। देवी चंद्रघंटा घंटे के कंपन के समान मन की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित कर भक्तों के भाग्य को समृद्धि करती हैं, चंद्र हमारी बदलती हुई भावनाओं विचारों का प्रतीक है। घंटे का अभिप्राय मंदिर में स्थित घंटा और उसकी ध्वनि कंपन से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा है। अस्त-व्यस्त मानव मन जो विभिन्न विचारों में उलझा रहता है।
मां चंद्रघंटा की आराधना कर सांसारिक कष्टों से मुक्ति पाकर दैवीय चेतना का साक्षात्कार करता है और उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। उनके 10 हाथ है मां चंद्रघंटा सच्चे और एकाग्र भक्तों के कष्टों का निवारण तुरंत करती हैं। इनकी आराधना से साधक में न केवल साहस और निर्भयता बल्कि सौम्यता और विनम्रता का भी विकास होता है। उनकी देहऔर स्वर में दिव्य ज्योति और मधुरता का समावेश हो जाता है। चंद्रघंटा की 10 भुजाएं हैं जो पांच कर्मेंद्रियों और पांच ज्ञानेंद्रियों के प्रतीक है, जो मनुष्य इंद्रियों के अधीन होकर कर्म करता है वह सदैव बंधन में जीवन व्यतीत करता है। मां के इस रूप से हमें जितेंद्रिय होने की प्रेरणा मिलती है।