कश्मीर समस्या के समाधान का एकमात्र रास्ता PoK पर विजय पाना
कश्मीरी पंडितों और हिन्दुओ द्वारा कश्मीर छोड़ने की घटनाएं पुनः सामने आ रही हैं। आज सरल भाषा मे इसके पीछे की पूरी कहानी समझाए देता हूँ। साल 1980 के दशक में जब अमेरिका और रूस यानी USSR आपस मे जानी दुश्मन हुआ करते थे तब वे सामने से युद्ध नही कर सकेते थे क्योंकि दोनों महाशक्ति है, इनके सामने से युद्ध का अर्थ था तृतीय विश्वयुद्ध होना। इसलिए अमेरिका ने रूस से बदला लेने के लिए एक नया रास्ता निकाला।
इसके
लिए उसने रूस के दुश्मनों को और उनके विरोधियों को ट्रेनिंग देकर हथियार
मुहैया कराकर रूस के खिलाफ लड़ने का मन बनाया यानी खुद ना लड़कर रूस के खिलाफ
अन्य लोगो को रूस से लड़वाकर। टेक्निकली इसे प्रॉक्सी वार या शीत युद्ध कहा
जाता है। इसके लिए
अमेरिका ने अफगानिस्तान के मोस्ट वांटेड अपराधियों को खोज खोज कर उठाया और
पाकिस्तान की मदद से उन्हें आतंक की ट्रेनिंग देनी शुरू की। ये ट्रेनिंग
भारत के कश्मीर का वह हिस्सा जिसे 1947 में पाकिस्तानियों ने कब्जा कर लिया
था, जिसे आज PoK कहा जाता है, में देनी शुरू की। PoK में कई जगह इनके
ट्रेनिंग कैंप खोले गए। खोज
खोज कर अफगान अपराधी PoK बुलाये जाते, पाकिस्तान उन्हें लड़ाई और हथियारों
की ट्रेनिंग देता और इन्हें हथियार देकर वापस अफगानिस्तान में प्लांट कर
देता। इन ट्रेनिंग लिए हुए लड़ाकों यानी आतंकवादियों को तालिबान कहा जाता
था।
तालिब का अर्थ होता है तलब रखना यानी इच्छा रखना अर्थात प्रशिक्षण लेने
वाले लोग। इसलिए इन्हें तालिबानी कहा गया। ये
तालिबानी वापस अफगानिस्तान पँहुच कर रूस की सेना से टक्कर लेने लगे। तब
वही हुआ जो अभी हुआ है यानी जिस तरह अभी हाल में अमेरिका तालिबानियों के
हाथ अफगानिस्तान छोड़कर वापस चला गया वैसे ही रूसी सैनिक अफगानिस्तान छोड़ कर
वापस चले गए। इससे रूसी सैनिको के वापस जाते ही अफगानिस्तान में
तालिबानियों का शासन हो गया। ये सब घटना हो रही थी 1980 के दशक में। जब
अमेरिका की ये विधि कारगर सिद्ध हुई तब विचार आया कि अगर इस तरीके का
इस्तेमाल करने से अफगानिस्तान जैसा छोटा सा हिस्सा, रूस जैसी महाशक्ति को
खदेड़ सकता है तो हम भी इसका इस्तेमाल कर के कश्मीर से भारतीयों को खदेड़
सकते हैं और पूरा कश्मीर भारत मे मिला सकते हैं।
परिणामतः
रूसी सैनिकों के अफगानिस्तान छोड़कर जाने के बाद यानी अमेरिका का उद्देश्य
पूरा होने के बावजूद इनके PoK वाले उपरोक्त ट्रेनिंग कैम्प बन्द नही किये
गए बल्कि 1990 से ही भारत के हिस्ट्रीशीटर, अपराधी, गैंगस्टर और फरार लोगो
को उठाकर PoK में लेजाकर वैसी ही ट्रेनिंग दी जाने लगी और भारत के खिलाफ
हथियार मुहियाँ कराए जाने लगे। ट्रेनिंग
लिए लोग जब हथियारों के साथ वापस कश्मीर भेजे गए, तब अफगानिस्तान के
तालिबानियों की तर्ज पर कश्मीर में भी एक आतंकवादी संगठन का जन्म हुआ जिसका
नाम था कश्मीर लिबरेशन फ्रंट। इसके बाद इन्होंने उन लोगो से बदला लेना
शुरू किया जिन्होंने कभी इन्हें जेल भेजा था या इन्हें सजा सुनाई थी। ये
कश्मीरी पंडित थे। तब
कश्मीर की लगभग 20% आबादी कश्मीरी पंडित (हिन्दू) हुआ करती थी। वहां की सभी
प्राइम पोजिशन जैसे पोलिस प्रशासन, न्यायपालिका, बड़े उद्योगपति, व्यापारी
आदि अधिकतर हिन्दू थे। कश्मीरी पंडित थे।
इन
आतंकियों ने लोगो के घरों और दुकानों के बाहर पोस्टर लगाने शुरू कर दिए कि
इस्लाम कुबूल कर के हमारी संस्कृति स्वीकार करे याफिर अपने घरों की
महिलाओं को यहीं छोड़कर कश्मीर से चले जाएं। अखबारों में भी खुलेआम इश्तेहार
देने शुरू हुए कि महिलाओ को यही छोड़कर पुरुष यहां से चले जाएं अन्यथा मारे
जाएंगे। तब बड़ा नरसंहार भी हुआ। हिंसा और अत्यचार से तंग आकर कश्मीरी
हिन्दुओ ने घाटी छोड़ना शुरू कर दिया। आज
पुनः वही घटना रिपीट हुई है यानी स्कूल की प्रिंसिपल और टीचर का आई कार्ड
चेक कर के उनके गैर इस्लामी होने के कारण उन्हें सड़क पर निकाल कर गोली मार
दी गयी। यह 90 के शक की पुनरावृत्ति हुई है। कश्मीर
की यह समस्या नेशनल इश्यू होते हुए भी सरकार इसे नेशनल इश्यू नही बनाती है
ताकि अन्य राज्यो में इसके कारण साम्प्रदायिकता ना पैदा हो सके, देश के
हालात खराब ना हो सके, आपसी वैमनस्यता ना फैल सके, सरकार इसे न्याय का
मुद्दा बनाती है यानी जिसने वहां यह अपराध किया है उसे दण्ड दिया जाएगा।
जब
तक वहां ट्रेनिंग कैंप में हमारे हिस्ट्रीशीटर ट्रेनिंग लेकर हमारे खिलाफ
हथियार प्राप्त कर रहे हैं, और यहां आकर गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं,
तब तक भारत असुरक्षित है। सेना के जवान शहीद होते रहेंगे फिरभी हम वही के
वहीं बने रहेंगे। यही कारण है कि मैं कश्मीर समस्या के समाधान का एकमात्र रास्ता PoK पर विजय मानता हूँ सरकार को PoK पर बिना देरी विचार करना चाहिए। अब सरकार तय करे कि वह PoK वापस लेने का साहस बटोरने को तैयार है या नही?
निखिलेश मिश्रा