सतयुग का धर्म ध्यान, त्रेतायुग का यजन-पूजन और द्वापर का धर्म सेवा है
जो बड़भागी जीव कथा, कीर्तन, ध्यान, जप और सेवा में ही लगा रहता है उसके जीवन मे माया का प्रवेश नहीं होता। सतयुग का धर्म ध्यान, त्रेतायुग का धर्म यजन-पूजन, द्वापर का धर्म
सेवा और कलियुग के धर्म हरि कीर्तन है।
इस कलिकाल में भी कितने वैष्णव ऐसे
हैं, जिनके घर में कलियुग का प्रवेश नहीं है। इस कलिकाल में ही भगवान चैतन्य महाप्रभु ने इस संदेश को दिया।