भयभीत होना एक अप्राकृतिक बात है
आनंदित रहने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि अंत:करण भय की कल्पनाओं से सर्वथा मुक्त रहे क्योंकि भय की एक शंका मन में प्रवेश करते ही, वातावरण को संदेह-पूर्ण बना देती है। मन से भय की भावनाएँ निकाल फेंकिए, भयभीत होना एक अप्राकृतिक बात है प्रकृति नहीं चाहती कि मनुष्य डर कर अपनी आत्मा पर बोझ डाले तुम्हारे सब भय, तुम्हारे दु:ख, तुम्हारी नित्यप्रति की चिंताएँ, तुमने स्वयं उत्पन्न कर ली हैं यदि तुम चाहो, तो अंत:करण को भूत-प्रेत-पिशाचों की श्मशान भूमि बना सकते हो।
इसके विपरीत यदि तुम चाहो तो अपने अंत:करण को निर्भयता, श्रद्धा, उत्साह के सद्गुणों से परिपूर्ण कर सकते हो अनुकूलता या प्रतिकूलता उत्पन्न करने वाले तुम स्वयं ही हो तुम्हें दूसरा कोई हानि नहीं पहुँचा सकता, बाल भी बाँका नहीं कर सकता तुम चाहो, तो परम निर्भय, नि:शंक बन सकते हो तुम्हारे शुभ-अशुभ वृत्तियाँ, यश-अपयश के विचार, विवेक-बुद्धि ही तुम्हारा भाग्य-निर्माण करती है। भय की एक शंका मन में प्रवेश करते ही, वातावरण को संदेह-पूर्ण बना देती है।
हमें चारों ओर वही चीज नजर आने लगती है, जिससे हम डरते हैं यदि हम भय की भावनाएँ हमेशा के लिए मनमंदिर से निकाल डालें, तो उचित रूप से तृप्त और सुखी रह सकते हैं आनंदित रहने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि अंत:करण भय की कल्पनाओं से सर्वथा मुक्त रहे। आइए, हम आज से ही प्रतिज्ञा करें कि हम अभय हैं भय के पिशाच को अपने निकट न आने देंगे श्रद्धा और विश्वास के दीपक को अंत:करण में आलोकित रखेंगे और निर्भयतापूर्वक परमात्मा की इस पुनीत सृष्टि में विचरण करेंगे।