एकाग्रता से एक ही लक्ष्य पर किये गए कार्य में सफलता अवश्य मिलती है


जब एक समय में सिर्फ एक ही लक्ष्य पर एकाग्रता से कार्य किया जाता है तो सफलता अवश्य मिल जाती है मुख्य कार्य आत्म दर्शन है इसके सिद्ध होते ही अंतःकरण चतुष्टय भी सिद्ध हो जाता है
एकाग्रता मानव की सफलता का मुख्य कारण एकाग्रता है

मानव का सर्वांगीण विकास भी एकाग्रता के आधार पर ही निर्भर है, अपने जीवन में मनुष्य एक साथ कई लक्ष्यों को लेकर चलता है लेकिन सफलता नहीं मिल पाती जब एक समय में सिर्फ एक ही लक्ष्य पर एकाग्रता से कार्य किया जाता है तो सफलता अवश्य मिल जाती है अब प्रश्न उठता है कि किसकी एकाग्रता उत्तर के रूप में 'मन' 'बुद्धि ''चित्त' 'अहँकार' की एकाग्रता अर्थात अंतःकरण चतुष्टय की एकाग्रता अब विचार उत्पन्न होता है कि जब अंतःकरण चतुष्टय के सभी साधनों का कार्य अलग अलग है तो एकाग्रता कैसे संभव होगी क्योंकि मन संकल्प विकल्प में लगा रहता है चित्त संस्कारों को धारण करता है और बुद्धि निश्चय करती है आदि

इन सब के कार्यों की विभिन्नता होते हुए एकाग्रता एवं सफलता कैसे बने महर्षि पातंजलि ने व्याकरण महाभाष्य में एक सिद्धान्त स्थापित किया है" गौण मुख्योर्मुख्ये कार्य संप्रत्ययः" अर्थात अगर दो कार्य हमारे सामने हैं उनमें से एक मुख्य कार्य है और दूसरा गौण कार्य है तब मुख्य कार्य को ही प्राथमिकता देनी चाहिए अंतःकरण चतुष्टय के कार्य भिन्न होने पर भी मुख्य कार्य तो 'आत्म दर्शन' है यही जीवन का मुख्य लक्ष्य है इस अंतिम और सर्वोपरि लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अन्य कार्यों को स्थगित करके मुख्य उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है

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