धन ही सामान्य जीवन में मनुष्य का परम् मित्र है


 
त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं पुत्राश्च दाराश्च सज्जनाश्च।

तमर्थवन्तं पुनराश्रयन्ति अर्थो हि लोके मनुषस्य बन्धु:॥

भावार्थ- किसी धनहीन व्यक्ति के मित्र, संतान, पत्नी तथा घनिष्ठ मित्र भी उसका साथ छोड़ देते हैं यदि वह फिर से धनवान हो जाता है तो वे ही लोग फिर से उसके आश्रय में आ जाते हैं इसीलिए कहा गया है कि धन ही सामान्य जीवन में मनुष्य का परम् मित्र है।

इस सुभाषित से समाज में व्याप्त दुर्बलता बताई गई है कि समाज पैसे को अधिक महत्व दे रहा है और स्वार्थी प्रवृत्ति बढ़ रही है यही सनातन धर्म के पतन का कारण भी है।

Popular posts from this blog

स्वस्थ जीवन मंत्र : चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

!!कर्षति आकर्षति इति कृष्णः!! कृष्ण को समझना है तो जरूर पढ़ें