सत्य के मार्ग पर चलने का भाव ही वास्तविक जगना है
मनुष्य के भीतर दैवीय गुणों को जाग्रत करना ही देवोत्थान एकादशी व्रत का मुख्य संदेश है। यह शास्त्रों की और हमारे मनीषियों की हमारे ऊपर बड़ी कृपा रही है कि जब जब हमारे भीतर का देवत्व सुषुप्त अवस्था में चला जाता है तथा आसुरी वृत्तियाँ हमारे चित्त पर हावी होने लगती है तब तब कोई न कोई ऐसा पर्व या व्रत जरुर आ जाता है जो हमें हमारे देवत्व का बोध करा जाता है।
हमारी चेतना में सुषुप्त देवत्व को जागृत करना यह आज के व्रत का मुख्य उदेश्य है, निराहार रहना आज के व्रत का उदेश्य नही निर्विकार रहना जरुर है। सत्कर्म करने की भावना जग जाए सत्य के मार्ग पर चलने का भाव जग जाए यही वास्तविक जगना है। नारायण माने धर्म हमारे भीतर धर्म जाग्रत हो जाये भगवान का बैकुंठ में जागना तो महत्व रखता ही है उनसे प्रार्थना करें कि वे हमारे ह्रदय रूपी बैकुंठ में भी जग जाएँ।