परिवर्तन सृष्टि का नियम है


गीता कहती है जरा को जरूर जानो जरा का अर्थ है मिटना, छीजना, ह्रास होना कोई भोर ऐसी नहीं जो शाम न हो, कोई शाम ऐसी नहीं जो भोर न हो कोई रात ऐसी नहीं जो प्रभात पैदा न करे परिवर्तन यहाँ का नियम है हम उन चीजों को सँभालने की कोशिश में लगे हैं जो सदा एक जैसी नहीं रह सकती

अवस्था भी हमारी नित्य बदल रही है जैसे हम कल थे वैसे आज नहीं है और जैसे आज हैं वैसे कल नहीं रहेंगे शरीर का कोई भरोसा नहीं इसलिए जो श्रेष्ठ कर्म करना चाहो वो तुरंत कर लेना समय कभी भी किसी का इन्तज़ार नहीं करता विचारों की भी अराजकता हमारे भीतर चल रही है रोज नये विचार , नये उद्देश्य, नई दौड़ आप स्वयं भी तो अपने भीतर हो रहे परिवर्तन को देख रहे हो आप भी तो नित बदल रहे हो फिर दूसरों के बदल जाने पर क्रोध क्यों करते हो। परिवर्तन जीवन का साश्वत क्रम है उसमें स्वयं को समायोजित करना ही श्रेयष्कर है।

Popular posts from this blog

स्वस्थ जीवन मंत्र : चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

!!कर्षति आकर्षति इति कृष्णः!! कृष्ण को समझना है तो जरूर पढ़ें