समत्वं योग उच्यते



योगस्थ: कुरुकर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।

सिद्धय सिद्धयो:समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥

हमारे व्यवहारिक जीवन में योग का क्या साधन है अथवा व्यवहारिक जीवन में योग को कैसे जोड़ें  इसका श्रेष्ठ उत्तर केवल भगवद्गीता के इन सूत्रों के अलावा कहीं और नहीं मिल सकता है।

गुफा और कन्दराओं में बैठकर की जाने वाली साधना ही योग नहीं है हम अपने जीवन में, अपने कर्मों को कितनी श्रेष्ठता के साथ करते हैं, कितनी स्वच्छता के साथ करते हैं बस यही तो योग है भगवद्गीतामें कहा है कि किसी वस्तु की प्राप्ति पर आपको अभिमान ना हो और किसी के छूट जाने पर दुःख भी न हो।

सफलता मिले तो भी नजर जमीन पर रहे और असफलता मिले तो पैरों के नीचे से जमीन काँपने न लग जाये बस दोनों परिस्थितियों में एक सा भाव ही तो योग है यह समभाव ही तो योग है।

समत्वं योग उच्यते।

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