आत्मघाती लोग ही इस संसार में तिरस्कृत, लांछ्ति, घृणित, उपेक्षित और असफल रहते हैं
आंतरिक दुर्बलताओं और त्रुटियों के कारण ही मनुष्य का सांसारिक जीवन अभावग्रस्त अविकसित एवं अशांत रहता है भीतर की कमजोरी ही बाहर दीनता और हीनता के रूप में दृष्टिगोचर होती है आत्मघाती लोग ही इस संसार में तिरस्कृत, लांछ्ति, घृणित, उपेक्षित और असफल रहते हैं जिसके भीतर आत्मबल भरा होगा जिसके अंतर में प्रकाश उठ रहा होगा उसके बाह्य जीवन का प्रत्येक क्षेत्र आशा उत्साह स्फूर्ति तेजस्विता और पुरूषार्थ से परिपूर्ण दिखाई देगा भीतरी बल की आभा को बाहर प्रकट होने से कोई आवरण रोक नहीं सकता गरीबी अस्वस्थता एवं विपन्न परिस्थितियों में पड़े हुए होने पर भी मनस्वी व्यक्ति अपनी महानता की प्रभा फैलाते रहते हैं ऐसे लोगों की दुर्दशा क्षणिक ही हो सकती है, चिरस्थायी नहीं
व्यक्ति का विकसित व्यक्तित्व ही वस्तुतः उसकी सच्ची संपत्ति सिद्ध होता है यह संपत्ति जिसके पास मौजूद है, उसे न तो दरिद्र कहा जा सकता है और न असफल बादलों के टुकड़े चंद्रमा को देर तक कहाँ छिपाये रह सकते हैं विपन्नता किसी मनस्वी व्यक्ति को दुर्दशाग्रस्त स्थिति में देर तक कहाँ पड़ा रखती है जहाँ आत्मबल होगा, वहाँ कोई भी अभाव, चाहे वह व्यक्तिगत हो अथवा सांसारिक अधिक समय तक टिक नहीं सकेगा।