जैसा भाव होगा, वैसा फल मिलेगा

भगवान के हजारों नाम हैं, एक में मन लगे तो मुक्ति-भक्ति-ज्ञान सब प्राप्त हो जाय,जिसका जैसा भाव होगा, वैसा फल मिलेगा। महाराज जी के इस उपदेश में हम सब के लिए संभवतः गहरा सन्देश है। हममें से बहुत से लोग किसी ना किसी देवी- देवता को मानते हैं कई लोगों के इष्ट भी होते हैं हम उनकी आरती करते हैं, भजन -कीर्तन करते हैं, बहुत से लोग उनके मंदिर भी जाते हैं और प्रसाद-चढ़ावा चढ़ाते हैं अच्छी बात है करना चाहिए।

परन्तु यदि हमारा उद्देश्य ईश्वर में (या अपने इष्ट में) मन लगाना है, उनकी सच्ची भक्ति करनी है तो हमें जागरूक भी रहना होगा कि केवल इन सब गतिविधियों से हमारे उद्देश्य की प्राप्ति संभव नहीं है ईश्वर में मन लगाने के लिए उनके प्रति हमारे सच्चे भाव की ही आवश्यकता होती है। अब प्रश्न ये है की अपने अंदर सच्चे भाव लाने के लिए हम क्या कर सकते हैं तो इस सन्दर्भ में महाराज जी हमारा मार्गदर्शन यहाँ पर कर रहे हैं। अपने इष्ट के बारे में या जिस भी देवी -देवता को हम मानते हों उनके गुणों के बारे में जानने से हमें लाभ होगा इसके लिए सबसे विश्वसनीय स्रोत तो हमारे दिव्य ग्रंथों ही हैं जिनको पढ़ने से हमें ऐसी जानकारी विस्तार से मिल सकती है। तदुपरांत अपने इष्ट के गुणों को अपने जीवन में उतारने की ईमानदार कोशिश आवश्यक है जितना भी हमारे लिए संभव हो साथ ही साथ अपने इष्ट में पूर्ण समर्पण की भावना भी आवश्यक है
 
इस मार्ग में ये दोनों चरण महत्वपूर्ण हैं ऐसा करने से अपने इष्ट के समीप जाना हमारे लिए संभव हो सकता है उनकी अनुभूति होना भी संभव है और यही इच्छुक लोगों के लिए संसार रूपी भवसागर से मुक्ति का मार्ग भी है यही अपने इष्ट के लिए हमारी सच्ची भक्ति होगी और हमें ज्ञान की प्राप्ति होगी यदि ऐसा करने की हमारी इच्छाशक्ति है तो ये असंभव नहीं है। इस सन्दर्भ एक और मार्ग भी संभव है महाराज जी के उपदेशों पर चलना उन पर चलने की धैर्यपूर्वक कोशिश तो अवश्य करना यदि हमारी कोशिश ईमानदार होगी और अपने इष्ट के प्रति हमारी तृष्णा प्रबल होगी तो महाराज जी स्वयं हमें, हमारे इष्ट के समीप जाने का मार्ग दिखाएंगे ये निश्चित है प्रत्यक्ष, या अप्रत्यक्ष रूप से महाराज जी सबका भला करें।

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