जीवन में नये रास्ते घर बैठे नहीं मिलेंगे

 
संसार में बहुत लोग असफल हो जाने के डर से प्रतिस्पर्धा में नहीं पड़ते, यह कहना कि प्रभु ने जो दिया है मैं उसमें सन्तुष्ट हूँ, यह संतोष नहीं कमजोरी है भय है, नकारात्मक संतोष है अपने आप को विकसित करने से रोक देने जैसा है, फूल को खिलने से रोक देने जैसा है 
 
मेहनत और कर्म करने में पूरे असंतोषी रहिए, प्रयास की सात्विक अंतिम सीमाओं तक पहुँचिए कर्म के बाद जितना मिले, जैसा मिले, जब मिले, जहाँ मिले उसमें संतोष रखिए और प्रभु पर भरोसा रहे। कर्म जरूर करते रहें, जीवन में नये रास्ते घर बैठे नहीं मिलेंगे, वो कर्म करते-करते नजर आयेंगे भगवान् को कर्मशील भक्त ही प्रिय हैं।

Popular posts from this blog

स्वस्थ जीवन मंत्र : चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

!!कर्षति आकर्षति इति कृष्णः!! कृष्ण को समझना है तो जरूर पढ़ें